आइये घर बैठे केपी एस्‍ट्रोलॉजी सीखें




कृष्णमूर्ति पद्वति -केपी एस्‍ट्रोलॉजी- (kp astrology)

 
कृष्णमूर्ति पद्वति (केपी एस्‍ट्रोलॉजी) किसी भी ज्योतिषिय विधा से सीखने में न केवल सरल है, अपितु एकदम सटीक भी है। कृष्णमूर्ति जी ने जब इसका आविष्कार किया तो सोचा भी नहीं होगा कि यह तेजी से लोकप्रिय होगी और हर आय, आयु वय के लोग इसे सीखना चाहेंगे। दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत में इसे सिखाने के तरीके भी अलग-अलग हैं। यह इतनी आसान और रोचक है कि आप बातों-बातों में और अपने रोजमर्रा के कामकाज करते हुए आसानी से इसे सीख सकते हैं। आचार्य पं भवानी शंकर वैदिक बता रहे हैं कि केपी एस्‍ट्रोलॉजी कैसे सीखें.

केपी एस्‍ट्रोलॉजी-,9 ग्रह, 12 राशि, 27 नक्षत्र=360 डिग्री=भचक्र

"  केपी एस्‍ट्रोलॉजी बहुत ही रोचक और सरल है बस थोडासा ध्यान लगाने की जरुरत है" -  आचार्य पं भवानी शंकर वैदिक 
 
भचक्र (वकपंब)-सूर्य पथ वृत्ताकार 360 अंश लम्बा तथा 15 अंश चौड़ा होता है। इसे भचक्र कहते हैं।यह 12 बराबर भागों में बंटा हुआ है। प्रत्येक भाग 30 अंश का होता है। इसे राशि कहते हैं। इनके नाम क्रमशः मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन हैं। यह भचक्र 27 बराबर भागों में बंटा हुआ है। प्रत्येक भाग को नक्षत्र कहते हैं। प्रत्येक नक्षत्र 13 अंश 20 कला का होता है। इनके नाम क्रमशः अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्र, उत्तराभाद्र और रेवती हैं।
ग्रह नौ होते हैं। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू, और केतू। तीन नए ग्रह प्लूटो, युरेनस एवं नेप्चून हैं। (इन तीन नए ग्रहों के बारे में फिर विवेचन करेंगे)
 

राशियों के स्वामी, ग्रह होते हैं जो निम्न प्रकार हैं.

 
1- मेष मंगल
2- वृष शुक्र
3- मिथुन बुध राशि स्वामी चक्र
4- कर्क चंद्र
5- सिंह सूर्य
6- कन्या बुध
7- तुला शुक्र
8- वृश्चिक मंगल
9- धनु गुरु
10- मकर शनि
11- कुम्भ शनि
12- मीन गुरु
 
सूर्य एक राशि में लगभग एक माह तक रहता है।
चंद्र एक राशि में लगभग सवा दो दिन तक रहता है।
मंगल एक राशि में लगभग डेढ़ माह तक रहता है।
बुध एक एक राशि में लगभग एक माह तक रहता है।
गुरु एक राशि में लगभग एक वर्ष तक रहता है।
शुक्र एक राशि में लगभग एक माह तक रहता है।
शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है।
राहू एक राशि में लगभग डेढ़ वर्ष तक रहता है।
केतु एक राशि में लगभग डेढ़ वर्ष तक रहता है
 
निम्न तालिका ग्रहों की  उच्च, नीच एवं स्वग्रही राशियां दर्शाती है
 
सूर्य 1 मेष 5 सिंह 7 तुला 5 सिंह
चंद्र 2 वृष 2 वृष 8 वृश्चिक 4 कर्क
मंगल 10 मकर 1 मेष 4 कर्क 1 मेष, 8 वृश्चिक
बुध 6 कन्या 3 मिथुन 12 मीन 3 मिथुन, 6 कन्या
गुरु 4 कर्क 9 धनु 10 मकर 9 धनु, 12 मीन
शुक्र 12 मीन 7 तुला 6 कन्या 2 वृष, 7 तुला
शनि 7 तुला 11 कुम्भ 1 मेष 10 मकर, 11 कुम्भ
 
हम सभी जानते हैं कि मकर संक्रांति सदैव 14 जनवरी को होती है। मकर संक्रांति का अर्थ सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है तथा सूर्य एक राशि में एक माह तक रहता है। अर्थात-सूर्य 14 जनवरी से 13 फरवरी तक दसवीं राशि मकर में रहता है.

सूर्य (SURYA)

14 जनवरी से 13 फरवरी तक दसवीं राशि मकर में रहता है।
14 फरवरी से 13 मार्च तक ग्यारहवीं राशि कुंभ में रहता है।
14 मार्च से 13 अप्रैल तक बारहवीं राशि मीन में रहता है।
14 अप्रैल से 13 मई तक पहली राशि मेष में रहता है।
14 मई से 13 जून तक दूसरी राशि वृष में रहता है।
14 जून से 13 जुलाई तक तीसरी राशि मिथुन में रहता है।
14 जुलाई से 13 अगस्त तक चौथी राशि कर्क में रहता है।
14 अगस्त से 13 सितम्बर तक पांचवीं राशि सिंह में रहता है।
14 सितम्बर से 13 अक्तूबर तक छठी राशि कन्या में रहता है।
14 अक्तूबर से 13 नबम्बर तक सातवीं राशि तुला में रहता है।
14 नबंवर से 13 दिसंबर तक आठवीं राशि वृश्चिक में रहता है।
14 दिसंबर से 13 जनवरी तक नौवीं राशि धनु में रहता है. (जारी)
 

आचार्य पं भवानी शंकर वैदिक

bhawanivaidik@gmail.com, tvdharam@gmail.com

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